नोटबंदी पर फैसला सही लेकिन तैयारी आधी-अधूरी

बरुण कुमार सिंह। 500 और 1000 रुपये के नोट को तत्काल बंद होने से लोगों में काले धन से निपट लेने का हौसला तो जगा है, लेकिन इससे पैदा हुई उनकी रोजमर्रा की दिक्कतें कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही हैं। जब तक बैंक एवं बैंक के एटीएम जहां से कैश मिल रहा है, कैश मिलना जब तक बंद नहीं हो रहा है, लोग कतार में लगे हैं, लोग तभी वापिस जा रहे हैं जब कैश खत्म हो जा रहा है। कितने लोग द्वारा पूरे दिन बर्बाद करने…

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गुरुनानक देव: भारतीय धर्म और संस्कृति के पुरोधा

ललित गर्ग। अनादि काल से देश और दुनिया में आध्यात्मिक गुरु को सर्वोच्च आदर प्रदान किया जाता रहा है। गुरु सर्वोच्च सत्ता है, परमब्रह्म परमेश्वर है। विश्व में अनेक धर्म-सम्प्रदाय प्रचलित हैं। हिन्दू, जैन, बौद्ध, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, यहूदी, तायो, कन्फ्युशियस आदि नामों से प्रचलित सभी धर्मों ने मानव जीवन का जो अंतिम लक्ष्य स्वीकार किया है, वह है परम सत्ता या संपूर्ण चेतन सत्ता के साथ तादात्म्य स्थापित करना। यही वह सार्वभौम तत्व है, जो मानव समुदाय को ही नहीं, समस्त प्राणी जगत् को एकता के सूत्र में बांधे…

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अमेरिका में ट्रंप काल

उतार-चढ़ाव और कटुता से भरे चुनाव प्रचार अभियान के बाद डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के 45 वें राष्ट्रपति चुन लिए गए। उन्होंने न केवल अपनी प्रतिद्वंद्वी हिलरी क्लिंटन को भारी अंतर से पराजित किया, बल्कि संसद के दोनों सदनों में अपनी पार्टी का बहुमत भी सुनिश्चित कर लिया। इस लिहाज से ट्रंप की अप्रत्याशित जीत बराक ओबामा की पिछली जीत से ज्यादा बड़ी है। बहरहाल, अब सवाल इन चुनाव नतीजों की अलग-अलग तरह से की जा रही व्याख्याओं को परखने का नहीं, इस तथ्य को स्वीकार करके आगे बढऩे का है…

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भारतीय मुद्रा का विमुद्रीकरण एक बार फिर

डा. राधेश्याम द्विवेदी। भारत की अपनी राष्ट्रीय मुद्रा है। इसका बाज़ार नियामक और जारीकर्ता भारतीय रिज़र्व बैंक है। नये प्रतीक चिह्न के आने से पहले रुपये को हिन्दी में दर्शाने के लिए ‘रु’ और अंग्रेज़ी में Rs. का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक भारतीय रुपये को 100 पैसे में विभाजित किया गया है। सिक्कों का मूल्य 5, 10, 20, 25 और 50 पैसे और 1, 2, 5 और 10 रुपये भी है। बैंकनोट 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 के मूल्य पर हैं। भारतीय करेंसी को…

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नारी ही, भारत की आत्मा भी घायल हो रही है

ललित गर्ग।  इतिहास का ऐसा कोई दौर नहीं गुजरा है जब मानवता के समक्ष चारित्रिक मूल्यों के संकट के सवाल न खड़े हुए हो और  हर बार यह आशंका व्यक्त की गई है कि मानवता का भविष्य अंधकारमय है। कहीं ऐसी कोई उम्मीद की किरण नहीं दिखाई पड़ रही है जो गहन तमस को भेद सके। मानवता के समक्ष खड़े संकट से इंकार नहीं किया जा सकता लेकिन हर दौर में कहीं-न-कहीं से कोई रास्ता निकलता ही रहा है। हर युग में उत्कर्ष और पतन के पन्ने लिखे जाते रहे…

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