राजनीतिक गणित ही नहीं कैमिस्ट्री भी समझें

विश्वनाथ सचदेव। किसी भी मुकाबले में एक पक्ष जीतता है, दूसरा हारता है। बिहार में भाजपा के नेतृत्व वाला गठबंधन हार गया है और नीतीश-लालू के नेतृत्व वाले महागठबंधन को सरकार बनाने का मौका मिला है। हार-जीत के कारणों की मीमांसा भी हो रही है और इस चुनाव-परिणाम के मतलब भी निकाले जा रहे हैं। यह काम हर पक्ष अपने फार्मूले से और अपने हिसाब से कर रहा है। मसलन, भाजपा का कहना है कि उसकी कैमिस्ट्री तो सही थी, पर उसका गणित गड़बड़ा गया। गणित के हिसाब से भाजपा…

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बदली महिलाओं ने जो तस्वीर

क्षमा शर्मा। जिस दिन बिहार चुनाव के चुनाव पूर्व सर्वेक्षण आने वाले थे, उस दोपहर शेयर बाजार लुढ़क गया था। इस बारे में खबर तो दी गई मगर चुनावी विश्लेषणों की बहसों में इस बात का जिक्र नहीं था। जबकि कहा जाता है कि इस तरह से शेयर बाजार का लुढ़कना सत्ताधारी दल की पराजय का संकेत होता है। खैर, इस चुनाव के बारे में एक स्त्री की नजर से अगर सोचूं तो कई महत्वपूर्ण बातें नजर आती हैं। मैं दिल्ली में रहती हूं। मैं और मेरे पति इतना तो कमा…

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दोहरी भूमिका के औचित्य पर सवाल

एस. निहाल सिंह। अब जबकि बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने तूफानी चुनावी प्रचार दौरों की बाबत यह सोचना चाहिए कि खुद को एक मुख्यमंत्री पद के दावेदार के सामने खड़ा करके उन्होंने क्या ठीक किया? हालांकि यही फार्मूला पिछले साल कई राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में सफल रहा था। इस बार बिहार के विधानसभा चुनाव में जिस निचले स्तर की भाषणबाजी वहां हुई और कैसे अपने राष्ट्रीय स्तर के उत्तरदायित्वों को दरकिनार करके प्रधानमंत्री एक स्थानीय राजनीतिक योद्धा का रूप धर…

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दीवाली हमारी, लक्ष्मी उनकी

आर.के.सिन्हा। एक बार साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता वी.एस.नायपाल बता रहे थे कि वे पहली बार भारत 1961 में दीपावली की रात को बम्बई पहुंचे। एयरपोर्ट से होटल के रास्ते में उन्हें ये देखकर निराशा हुई कि यहां पर ज्यादातर घरों के बाहर मोमबत्तियों से आलोक सज्जा हो रही थी। उनके देश त्रिनिदाद एवं टुबैगो में दीपावली पर अब भी मिट्टी के दीये जलाने का रिवाज है। दरअसल भारत से दशकों पहले सात समंदर पार चले गए भारतीय आज भी अपने तीज-त्योहारों को बहुत ही श्रद्धा और उत्साह के साथ मनाते…

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बढ़ती वायु प्रदूषण की प्रवृत्ति

विचार डेस्क। उत्तर भारत में अचानक और बढ़ गये वायु प्रदूषण और आसमान में छायी धुंध के मद्देनजर किसानों द्वारा फसलों के अवशेष जलाये जाने पर रोक और जुर्माना जहां जन स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की प्रतिबद्धता का प्रमाण है, वहीं राज्य सरकारों और वहां के प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की काहिली को बेनकाब करने वाला भी है। खासकर उत्तर भारतीय राज्यों में धान आदि फसलों के अवशेष खेतों में जला देने की खतरनाक प्रवृत्ति नयी नहीं है। हर साल ही इसके चलते धुंध और वायु…

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