पुष्पेंद्र कुमार। बीते सप्ताह बिहार की संक्षिप्त यात्रा के दौरान लोगों के बीच बेहद रोचक चुनावी चर्चाओं में शामिल होने का मौका मिला। मूलत: बिहार का होने के बावजूद मैं कह सकता हूं कि आप बिहार को जितना समझ पाते हैं, बिहार उससे भी अधिक समझदारी की उम्मीद करने लगता है। बिहार की राजनीतिक परिपक्वता को यदि लैंडमार्क इयर्स में देखा-परखा जाए तो साल 1977, साल 1990 और साल 2005 व्यापक सामाजिक राजनीतिक बदलावों के साल के रूप में चर्चित रहे हैं। बदलाव के इन लैंडमार्क ईयर्स में अंतराल जिस…
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सहवाग की नवाब-सी विदाई नहीं
हमने उन्हें कभी मुल्तान का सुल्तान कहा तो कभी नजफगढ़ का नवाब। मगर उनके जन्मदिन पर जिस तरह से उनके क्रिकेट के सभी प्रारूपों से संन्यास लेने की खबर आई, उसने हर क्रिकेट प्रेमी को हतप्रभ किया। अभी उनका क्रिकेट बाकी था और अच्छा होता यदि वे किसी यादगार पारी को खेलते हुए दर्शकों के बीच से गौरवपूर्ण विदाई लेते। मगर सहवाग हमेशा अपने अंदाज में खेले और अपने अंदाज में अलविदा कह गए। कहीं न कहीं पिछले तीन साल से क्रिकेट की मुख्यधारा से अलग-थलग रहना उन्हें टीस दे…
Read Moreदेश हित में संतुलित ऊर्जा नीति जरूरी
डा. भरत झुनझुनवाला। ईंधन तेल के दाम में बीते समय में भारी गिरावट आयी है। गत वर्ष अगस्त में दाम 103 अमेरिकी डॉलर प्रति बैरल था जो कि गत माह 48 डॉलर रह गया था। मोदी सरकार ने इस गिरावट के लाभ को जनता को हस्तान्तरित कर दिया है यानी हमारे पेट्रोल स्टेशन पर तेल के दाम गिर रहे हैं। इसके विपरीत केजरीवाल सरकार ने तेल पर टैक्स बढ़ा दिया है यानी अंतरराष्ट्रीय गिरावट का उपयोग सरकारी खजाने को बढ़ाने के लिये किया है, न कि उपभोक्ता को राहत पहुंचाने…
Read Moreसहिष्णुता की कसौटी पर मोदी
एस. निहाल सिंह। हिंदी साहित्यकार उदय प्रकाश हाल ही में विरोध स्वरूप सम्मान लौटाने वाले लेखकों में ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने वीएम कलबुर्गी के कत्ल से क्षुब्ध होकर 4 सिंतबर को साहित्य अकादमी को अपना पुरस्कार लौटा दिया। कलबुर्गी की तरह तीन अन्य लेखकों को भी पिछले कुछ समय के दौरान इसलिए अपनी जान से हाथ धोना पड़ा क्योंकि वे सब या तो तार्किक सोच रखते थे या फिर स्वतंत्र विचारों वाला लेखन किया करते थे। लेकिन सम्मान लौटाने का यह चलन तब जोर पकड़ गया जब दिवंगत प्रधानमंत्री जवाहरलाल…
Read Moreअन्न ब्रह्म, फिर भी 58,000 करोड़ की बर्बादी
डॉ. मोनिका शर्मा। यह कैसी विडंबना है कि हमारे यहां भूखे लोग भी हैं और अन्न की बर्बादी भी? बीते कुछ सालों में हमारे देश में बड़ी मात्रा में खाने की बर्बादी हो रही है। ऐसे में हम सबकी जिम्मेदारी है कि सामाजिक और व्यक्तिगत स्तर पर अन्न का हर दाना सहेजने की कोशिश की जाये। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि अकेले राजधानी दिल्ली में ही हर रोज 384 टन जूठन फेंकी जाती है। बेंगलुरु पर किए गए अध्ययन के मुताबिक हर साल शहर में केवल विवाहों के दौरान 950 टन…
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