भारतीय शिक्षा पद्धति: गरीबों के हाथ खाली के खाली

आरती रानी प्रजापति। भारतीय शिक्षा पद्धति एकदम अजीब है। यहां पब्लिक स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों के पास इतने काम हैं कि वह करते नहीं थकते दूसरी और सरकारी स्कूलों में 8 वीं कक्षा तक बच्चों को पास करने का प्रावधान हैं। गरीब मां-बाप यह जानते हुए भी कि सरकारी तंत्र के कारण आज शिक्षा की क्या दशा है अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजते हैं। मैं यह भी नहीं कह रही कि सभी सरकारी स्कूल पढाई के मामले में कम है पर अधिकतर ऐसे हैं यह कहने में…

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बात लेखकीय असहिष्णुता की भी हो

अनंत विजय। समकालीन हिंदी साहित्य के अलावा अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्यकारों के बीच देश में फैल रही असहिष्णुता और कट्टरता के खिलाफ बहस चल रही है। देश में बढ़ रही कट्टरता और प्रधानमंत्री की चुप्पी को आधार बनाकर कई लेखकों ने साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने का ऐलान किया है। हालांकि पुरस्कार वापसी अभियान पर लेखक समुदाय बंटा हुआ है। इस लेख का विषय पुरस्कार वापसी नहीं है। हम बात करेंगे लेखक समुदाय में अपनी रचना की आलोचना को लेकर बढ़ती असहिष्णुता पर, खासकर हिंदी लेखकों के बीच बढ़ रही…

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महिला विमर्श: संस्कृति या सत्ता

आरती रानी प्रजापति। अक्सर लोग संस्कृति के नाम का सहारा लेते हैं। भारतीय संस्कृति ऐसी है, वैसी है आदि-आदि। पर क्या वो सच में संस्कृति की बात करते हैं? जिस संस्कृति की वह बात करते हैं देखना चाहिए वह है क्या? समाज पहले आदिम युग में था मतलब न कोई बंधन न रोक-टोक महिलायें वहां स्वतन्त्र रूप से जीती थी अपने मन की करती थी। यहां तक की उन्हें शारीरिक संबंधों में भी पूरी आजादी थी। धीरे-धीरे समाज निजी संपत्ति के कारण विभिन्न संस्कृतियों में बंट गया जिसमें लड़कियों के…

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आम आदमी की सेहत से खिलवाड़

अभिषेक कुमार। एक जमाना था जब कहा जाता था कि घर से बाहर लंबे सफर पर निकले मुसाफिर अंगौछे में बांधकर लाए गए सत्तू या चने-चबैने से काम चला लेते थे। रास्ते में पडऩे वाले प्याऊ और रेलवे स्टेशनों में खानपान की व्यवस्था भी आगे चलकर यात्रियों का सुभीता कर देती थी। लेकिन लंबे सफर की तेज रफ्तार उन ट्रेनों में खानपान की व्यवस्था पैंट्री कार के तहत करना एक अनिवार्य जरूरत में तबदील हो गई, जो कई-कई घंटे चलने के बाद ही किसी बड़े स्टेशन पर रुकती हैं। पिछले कुछ…

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मंहगाई की मार: दालों के उत्पादन को बढ़ावा दे सरकार

डॉ. अश्विनी महाजन। अभी महंगे प्याज से त्रस्त जनता को आंशिक राहत मिलने लगी थी कि पिछले लगभग दो माह से दालों, विशेषतौर पर तूर (अरहर) और उड़द की दालों के भाव आसमान को छू रहे हैं। बाजार में तूर और उड़द की दाल 210 रुपए किलो बिक रही है। दालों के भाव पिछले कुछ सालों से ऊंचे बने हुए हैं और वे आम जन की पहुंच से बाहर होती जा रही हैं। पिछले साल की तुलना में दालों की कीमतें 40 प्रतिशत बढ़ चुकी हैं, लेकिन कुछ दालों में…

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