मैत्री का विराट् दर्शन है क्षमापना दिवस

गणि राजेन्द्र विजय। भारतीय संस्कृति में पर्वों का अत्यधिक महत्व एवं प्रभाव रहा है। समय-समय पर सर्वत्र-दीवाली, होली, रक्षाबंधन, दशहरा आदि अनेक भौतिक पर्व मनाये जाते हैं। किन्तु जैनधर्म त्याग प्रधान धर्म है। इसके पर्व भी त्याग-तप की प्रभावना के पर्व हैं। जैनधर्म में तीन पर्वों को विशेष महत्व दिया जाता है। 1. अक्षय तृतीया, 2. भगवान महावीर निर्वाणोत्सव (दीपमालिका) एवं 3. पर्युषण। इनमें अक्षय तृतीया-प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के वार्षिक तप के पारणे से संबंधित दिन है, जो वर्षी तप प्रारंभ एवं समापन का दिन माना जाता है। दीपमालिका…

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लोहिया के बहाने लालू का समाजवाद

पुष्पेंद्र कुमार। बिहार में चुनाव एक ऐसा जनादेश है जिसमें सियासत की अवधारणाओं का भविष्य दांव पर है। बीते साल हुए आम चुनाव के बाद भाजपा के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए दिल्ली विधानसभा चुनाव में दमदार विकल्प पेश किए जाने की सफलता को असरदार सियासत माना-समझा गया। बिहार में गैरभाजपा दलों की तैयारी और मंशा, हालांकि दिल्ली प्रयोग को दुहराने की दिखी, लेकिन समस्या यह है कि एनडीए और मोदी को रोकने के लिए राजनीतिक एकजुटता का आधार सेकुलरिज्म को बनाया गया। बिहार में सपा-एनसीपी गठबंधन, वामपंथी दलों…

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उत्तर प्रदेश दलित-उत्पीडऩ में सबसे आगे

एस.आर.दारापुरी। उत्तर प्रदेश दलितों (अनुसूचित-जाति) पर अपराध के मामले में पूरे देश में काफी समय से आगे रहा है। इस सम्बन्ध में एक यह तर्क दिया जाता रहा है कि उत्तर प्रदेश में दलितों की आबादी (4 करोड़ 13 लाख) दूसरे सभी राज्यों से अधिक है। अत: अपराध के आंकड़े भी अधिक ही रहते हैं. इस तर्क में कुछ सचाई है परन्तु हाल में राष्ट्रीय अपराध ब्यूरो द्वारा वर्ष 2014 के लिए दलितों के विरुद्ध हुए अपराध सम्बन्धी जारी किये गए आंकड़े दर्शाते हैं कि उत्तर प्रदेश में दलितों के…

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सिनेमाई सौंदर्य बोध की बोझिलता

अनंत विजय। सिनेमा हमारे समाज में एक बड़ी हद तक एक व्यसन की तरह माना जाता है। उसकी पहचान वयस्कता, ईष्र्या, ललचाने वाले संसार की ओर खुलने वाली खिड़की की ज्यादा रही है। पिछले तमाम बरसों में यह आधुनिक समाज की लोक-संस्कृति का लोकप्रिय विकल्प ही होता गया है। प्रतिरोध, साहित्य, विचार, सिनेमा में एक क्षीणधारा के रूप में ही मौजूद रहे। ये पंक्तियां लिखी हैं श्रीराम तिवारी ने अपने और प्रभुनाथ सिंह आजमी के संपादन में प्रकाशित किताब विश्व सिनेमा का सौन्दर्य बोध में। अब इन पंक्तियों से साफ…

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एक सरसंघ चालक की खुद की सरकार

हरीश खरे। पंद्रह वर्ष पूर्व इसी माह में भारत के एक प्रधानमंत्री ने संयुक्त राष्ट्र के वार्षिक महासभा मेले में भाग लेने के लिए अमेरिका की यात्रा की थी। उस यात्रा के दौरान उन्होंने स्टेटन आइलैंड में आयोजित विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में भाग लेने का समय निकाला, जिसमें उन्होंने स्वयं को एक स्वयंसेवक घोषित किया-जी हां, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक की तरह। उनके ये शब्द नागपुर घराने के कानों के लिए मधुर संगीत की तरह थे। एक ऐसा प्रधानमंत्री जो इस हिंदू संगठन से ज्यादा कुछ…

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