दुख का कारण है अपने दोषों को बड़ा करके देखना

lalit gargललित गर्ग। आधुनिक जीवन की बड़ी विडम्बना यह है कि हर व्यक्ति परेशान है। कुछ तो वास्तव में अपने अभावों और परेशानियों से सदा संत्रस्त और व्यथित रहते हैं और कुछ सब कुछ होते हुए भी पीडि़त और व्यथित रहते हैं। दोनों ही स्थितियों में इस मानसिक दुख का कारण है अपने दोषों को बड़ा करके देखना। उन्हें अपने गुण दिखाई ही नहीं देते।
केवल दोष देखकर, अपनी कमियां देखकर, अपने को कुरूप मानकर, अपनी मंदबुद्धि पर मन ही मन व्यथित रहना अनेक प्रकार के मानसिक रोगों को आमंत्रित करना है। ऐसा व्यक्ति कभी प्रसन्न नहीं रहता। उनकी दोष-दृष्टि उनकी खुशियों को घुन के समान भीतर ही भीतर खोखला कर देती है। अत: हमें चाहिए कि अपने गुणों को भी देखें। कोई ऐसी कमी नहीं जिसे सुधारा नहीं जा सकता। अगर आप कुरूपता से व्यग्र हैं तो स्मरण रखें कि किसी का सौन्दर्य उसके चेहरे या त्वचा अथवा रूप की बनावट में न होकर उसके पूरे व्यक्तित्व में है। सौन्दर्य सदा आंतरिक गुणों का ही स्थायी रहता है। अत: अपने गुणों को निहारिये।
यदि आप पुरुष हैं तो आपका पुरुषत्व, साहस, ओज और वीरता आदि आपके गुण ही आपकी सुंदरता के परिचायक हैं और अगर आप स्त्री हैं तो कमनीयता श्रद्धा, विश्वास, ममता आदि गुण आपका सौन्दर्य बनकर आपके व्यक्तित्व को निखार देंगे। जरूरत है जीवन में गुणों को विकसित करने की और इसके लिये एक सुनिश्चित दिशा का निर्धारण करने की। सेनेका का इस सन्दर्भ कहा कथन उपयोगी है कि अगर एक व्यक्ति को मालूम ही नहीं कि उसे किस बंदरगाह की ओर जाना है, तो हवा की हर दिशा उसे अपने विरुद्ध ही प्रतीत होगी।
एक बार का प्रसंग है। गौतम बुद्ध अपने काफिले के साथ एक जंगल से गुजर रहे थे। दोपहर बाद सबको भूख लगने लगी तो खाना बनाने की तैयारी शुरू हुई। पर खाना पकाने के लिए आसपास लकडिय़ां नहीं थीं। कुछ सोच विचार कर बुद्ध ने सभी साथियों को आदेश दिया- इधर-उधर जाकर लकडिय़ों के छोटे-छोटे टुकड़े एकत्र कर लाओ। काफी देर तक घूमने के बाद सभी सदस्यों ने अपनी-अपनी इक_ी की लकडिय़ां लाकर बुद्ध के सामने रख दीं। लकडिय़ों का ढेर लग गया। बुद्ध बोले-देखो, ध्यानपूर्वक खोजने से लकडिय़ों का ढेर लग गया है। इसी प्रकार यदि इनसान अपने छोटे-छोटे अवगुणों पर ध्यान दे तो वे भी ढेर से नजर आयेंगे। इन लकडिय़ों के ढेर को जलाकर हम भोजन तैयार कर सकते हैं, उसी प्रकार अपने अवगुणों को दूर कर हम एक पवित्र जीवन जी सकते हैं।
सफल एवं सार्थक जीवन निर्माण के लिये गुणों की जरूरत होती है। सभी में कुछ गुण अवश्य होते हैं। स्वयं खोजिए और उन्हें विकसित कीजिए। हो सकता है आपने अपनी प्रतिभा को सही न पहचाना हो, क्या हुआ अगर आप डॉक्टर, इंजीनियर नहीं बन पाए। हो सकता है प्रकृति आपको कुशल वक्ता, प्रोफेसर बनाना चाहती हो। अपनी आंतरिक शक्तियों को पहचानिए। अपनी योग्यता पर विश्वास कीजिए। हो सकता है आप संगीत, साहित्य, कला आदि में प्रसिद्धि प्राप्त करें। कुदरत सर्वत्र न्याय करती है। यदि वह एक स्थान पर कमी रखती है तो दूसरी ओर उससे भी अधिक महत्वपूर्ण गुणों को भर देती है।
एक बार रूसी लेखक टॉलस्टाय से उनके एक मित्र ने कहा-मैंने तुम्हारे पास एक व्यक्ति को भेजा था। उसके पास उसकी प्रतिभा के काफी प्रमाणपत्र थे। लेकिन तुमने उसे चुना नहीं। मैंने सुना है कि तुमने उस पद के लिए जिस व्यक्ति को चुना है, उसके पास ऐसा कोई प्रमाणपत्र नहीं था। आखिर उसमें कौन-सा ऐसा गुण था कि तुमने मेरी बात की उपेक्षा कर दी? लिओ टॉलस्टाय ने कहा-मैंने जिसे चुना है, उसके पास अमूल्य प्रमाणपत्र हैं। उसने मेरे कमरे में आने से पहले इजाजत मांगी थी। अंदर आने से पहले पैरों को दरवाजे पर रखा, ताकि बंद होने पर आवाज न हो। उसके कपड़े साधारण, परन्तु साफ सुथरे थे। उसने बैठने से पूर्व कुर्सी साफ कर ली थी। वह मेरे प्रश्न का ठीक और संतुलित जवाब दे रहा था। उसने किसी तरह की चापलूसी या चयन के लिए सिफारिश की कोशिश भी नहीं की। आप ही बताइए, मैंने ठीक चयन किया या नहीं?
आज जरूरत डिग्री और प्रमाण-पत्र से ज्यादा नैतिक एवं गुण सम्पन्न व्यक्तियों की है। आज जरूरत इस बात की भी है कि गुणों को प्रतिष्ठा दें। यदि आप परेशानी, व्यथा, दु:ख एवं संत्रास से मुक्त रहना चाहते हैं तो अपने गुणों को पहचानिए, उन्हें विकसित कीजिए। वर्तमान जीवन की शुद्धि बिना परलोक सुधार की कल्पना एक प्रकार की विडंबना है। उसी व्यक्ति का जीवन सार्थक हो सकता है, जो नैतिक है, जो गुण सम्पन्न है।