विमल शंकर झा। आजादी की लंबी लड़ाई के बाद हमारे देश में सत्तर सालों से एक और जंग चल रही है । यह है यह लड़ाई है गरीबी के खिलाफ जो शोषक और शोषितों के बीच चल रही है । पिछले पचास सालों में यह जंग 1990 के आर्थिक उदारीकरण शुरु होने के बाद से तेज हो चली है । अपने ही मुल्क में अपने ही लोगों के खिलाफ लडऩे लड़ाने की यह लड़ाई जितनी अमानवीय अवैधानिक और अनैतिक है उतनी है घातक भी है । इसके आत्मघाती होने से…
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चंदे की पारदर्शिता के लिये क्राउडफंडिंग
ललित गर्ग। विदेशी चंदा नियमन कानून के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले बीस हजार गैर सरकारी संगठनों को विदेश से पैसा लेने के अयोग्य करार देने का फैसला यही बता रहा है कि सेवा के नाम पर हमारे देश में किस तरह का गोरखधंधा जारी था। न केवल विदेशी चंदा बल्कि देश में ही सेवा एवं जनकल्याणकारी प्रवृत्तियों एवं धार्मिक चंदे के नाम पर धांधलियां एवं आर्थिक अनियमितताएं व्याप्त हैं। इतनी बड़ी संख्या में गैर सरकारी संगठनों को विदेश से पैसा लेने से रोके जाने के बाद भी देश में…
Read Moreप्रामाणिकता बनी रहे संसद की
हृदयनारायण दीक्षित। संसद भारत के मन का दर्पण है. दर्पण अपनी ओर से साज सज्जा नहीं करते. हम जैसे हैं, दर्पण हमारे चेहरे को वैसा ही दिखाता है. सबके मन व्यक्तिगत होते हैं. पूर्वजों और मनस्विदों ने मन को चंचल भी बताया है. भारत का मन प्राचीनकाल से जनतंत्री है. भिन्न विचार का आदर प्राचीन परंपरा है. संविधान निर्माताओं ने इसीलिए संसदीय प्रणाली अपनाई. संसदीय व्यवस्था में जनता ही बहुमत को सत्ता संचालन का अधिकार देती है और जनता ही विपक्ष को आलोचना का अधिकार देती है. कांग्रेस लम्बे समय…
Read Moreतेल के खेल में किंतु-परंतु
अश्विनी महाजन। पिछले लगभग 3 सालों से लगातार घटती कच्चे तेल की अंतर्राष्ट्रीय कीमतों के कारण पेट्रोलियम उत्पादों के भारत समेत तेल उपभोक्ता देशों को भारी फायदा हुआ। भारत में कुल तेल की खपत का 70 प्रतिशत से ज्यादा आयात करना पड़ता है। घटती तेल कीमतों के चलते भारत का तेल के आयात का बिल वर्ष 2012-13 में 164 अरब डालर से घटता हुआ 2015-16 में मात्र 83 अरब डालर तक पहुंच गया। स्पष्ट है कि यदि तेल की कीमतें घटती नहीं तो यह सब संभव नहीं होता और हमारा…
Read Moreकैलेण्डर ही नहीं, तकदीर भी बदले
ललित गर्ग। एक और वर्ष अलविदा हो रहा है और एक नया वर्ष चैखट पर खड़ा है। उम्र का एक वर्ष खोकर नए वर्ष का क्या स्वागत करें? पर सच तो यह है कि वर्ष खोया कहां? हमने तो उसे जीया है और जीकर हर पल को अनुभव में ढाला है। अनुभव से ज्यादा अच्छा साथी और सचाई का सबूत कोई दूसरा नहीं होता। सूर्य उदय होता है और ढल जाता है। शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष आते-जाते रहते हैं। कैलेण्डर बदल जाता है। नए वर्ष की शुरुआत हमें ऐसे…
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