देशद्रोह कानून और लोकतंत्र

एसआर दारापुरी। इधर जेएनयू के कुछ छात्रों द्वारा देश विरोधी नारे लगाने के संदर्भ में देशद्रोह कानून पुन: चर्चा में हैण् इस से पहले भी बहुत सारे मामलों में इस कानून पर उँगलियाँ उठती रही हैं। देशद्रोह का काला कानून अंग्रेजों द्वारा भारतवासियों के स्वतंत्रता संग्राम को दबाने के लिए बनाया गया था और इस्तेमाल किया गया था। उस समय बहुत सारे नेता इस कानून के अंतर्गत गिरफ्तार किये गए थे और जेलों में रखे गए थे। अत: यह उम्मीद की जाती थी कि जिस कानून का इस्तेमाल इस देश…

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स्वस्थता के लिये जरूरी है हंसना

ललित गर्ग। आज का जीवन मशीन की तरह हो गया है। अधिक से अधिक पाने की होड़ में मनुष्य न तो स्वास्थ्य पर ध्यान दे पाता और न ही फुर्सत के क्षणों में कुछ आमोद-प्रमोद के पल निकाल पाता। तनाव भरी इस जिंदगी में मानो खुशियों के दिन दुर्लभ हो गये हैं! कई चेहरों को देखकर ऐसा लगता है कि इनके चेहरों पर हंसी जैसे कई सालों में कुछ पलों के लिये आती होगी या फिर इन्होंने न हंसने की कसम खा रखी होगी। लोगों के चेहरे से खिलखिलाती हंसी…

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दुर्गा पूजा और महिषासुर

एस.आर.दारापुरी। इस समय एक बार फिर जेएनयू में दुर्गा पूजा की अनुमति दिए जाने तथा महिषासुर पूजा कि अनुमति न देने तथा लोकसभा में भी महिषासुर का सन्दर्भ आने के कारण महिषासुर का मुद्दा पुन: चर्चा में है। हम जनते हैं कि नवरात्र के दौरान दुर्गा के नौ अवतारों की नौ दिन तक बारी बारी पूजा की जाती हैण् इसी अवधि में दुर्गा की सार्वजानिक स्थलों पर मूर्तियों की स्थापना की जाती है जहाँ पर रात को तरह के गाने व भजन होते हैं और माता के भक्त अपनी श्रद्धा…

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अतिपिछड़ों व अल्पसंख्यकों को सपा सिर्फ वोट बैंक समझती है

चौ. लौटन राम निषाद। जिला पंचायत अध्यक्ष, ब्लाक प्रमुख चुनाव के बाद स्थानीय प्राधिकार क्षेत्र की विधान परिषद सदस्य चुनाव की सीटों को पुलिस व प्रशासन के दबाव व गुन्डई से समाजवादी पार्टी चुनाव जीतने के काम जुटी है। राष्ट्रीय निषाद संघ के राष्ट्रीय सचिव चौ. लौटन राम निषाद ने कहा कि कुछ व्यक्तियों को खरीद कर या प्रशासनिक दबाव डालकर चुनाव जीता जा सकता है परन्तु विधान सभा चुनाव-2017 में सपा 50-60 सीट भी नहीं जीत पायेगी। उन्होंने कहा कि जिस तरह 2006 के पंचायत चुनाव में गुण्डा गर्दी…

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जातीय बहस के तीखे प्रश्न 

 पुष्पेंद्र कुमार। रोहिथ वेमुला की दुखद आत्महत्या के बाद देशभर में जातीय पहचान और उसके अधिकारों को लेकर नई बहस शुरू हुई है। इस बहस का स्वागत किया जाना चाहिए क्योंकि यह हमारे साझेपन को बेहतर तरीके से तराशने का काम करेगा। एक छात्र की मौत को एक दलित छात्र की मौत में बताया जाना इस रूप में ठीक है कि उसका आंदोलन, संवेदना व उसकी चेतना उसी जातीय पहचान से निर्मित है, उसकी भुक्तभोगी हैं, लेकिन सियासी दलों के लिए एक दलित छात्र की मौत चुनावतंत्र में वोटबैंक की…

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