अनंत विजय। हिंदी में लघु पत्रिकाओं को लेकर अब भी खासा उत्साह बना हुआ है। एक अनुमान के मुताबिक इस वक्त हिंदी में करीब सौ साहित्यिक पत्रिकाएं निकल रही हैं, जिनके पीछे कोई संस्थागत पूंजी नहीं है। व्यक्तिगत प्रयास से निकलने वाली ये साहित्यिक पत्रिकाएं ज्यादातर अनियतकालीन निकलती हैं यानी इन पत्रिकाओं की आवर्तिता निश्चित नहीं है। जब साधन और रचनाएं जुट जाएं तो पत्रिका निकल आती है। हिंदी में साहित्यिक पत्रिकाओं का बेहद समृद्ध इतिहास रहा है। कई पत्रिकाएं महानगरों से निकलती हैं। दिल्ली सरकार ने एक वक्त लघु…
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न लक्ष्मी आई न बाकी देवता
आरती रानी प्रजापति। हमारे समाज (हिन्दू समाज) में विभिन्न देवी-देवताओं को पूजा जाता है। यहां कभी नौ-देवियों की पूजा होती है तो कभी हनुमान, राम, लक्ष्मी, काली, अग्नि, गोबर गणेश, शिवलिंग आराधे जाते हैं। दीवाली के दिनों में लक्ष्मी के स्वागत के लिए अमीर से लेकर गरीब तक के तबकों में विशेष उत्साह देखने को मिलता है। गरीब भी अपने टूटे-फूटे घर को साज-सजावट के साथ तैयार करता है। उसके पास साल-भर की जितनी बचत होती है वह इस आस में लगा देता है कि लक्ष्मी उल्लू पर बैठकर उसके…
Read Moreआतंक के कारोबार की तपिश
क्षमा शर्मा। फ्रांस में आतंकी हमलों के बाद त्राहि-त्राहि मची हुई है। अब तक महफूज माने जाने वाले यूरोप में जिस तरह से आतंकवाद ने दस्तक दी है, उससे लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि क्या करें। फ्रांस में मुसलमानों की आबादी पचास लाख है। बताया गया है कि आतंकियों ने यहां सात सौ से अधिक स्लीपर सैल बना रखे हैं। आखिर ऐसा कैसे हुआ कि यूरोप के तथाकथित सभ्य समाज में रहने वालों में से पचास हजार लोग आईएस के लिए काम करने के लिए आतंकवादी बन गए।…
Read Moreमानवीय हक में नजीर फैसला
संगीता भटनागर। देश में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं की वजह से गर्भवती हुई पीडि़त से जन्मी संतानों के अधिकारों को लेकर छिड़ी बहस के बीच हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सामाजिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एक ऐतिहासिक व्यवस्था दी है। यह व्यवस्था ऐसी संतान को अपने जैविक पिता या यों कहें कि बलात्कार करने वाले व्यक्ति की संपत्ति में अधिकार दिलाती है। ऐसा संभवत: पहली बार हुआ है कि किसी न्यायिक व्यवस्था में बलात्कार की वजह से गर्भवती हुई पीडि़त की कोख से जन्म लेने वाली संतान को उसके…
Read Moreनीतीश की नई पारी में सियासी संभावनाएं
पुष्पेंद्र कुमार। बिहार के बेहद प्रतीक्षित जनादेश के बाद 35वें मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार ने लगातार तीसरी बार और कुल मिलाकर पांचवी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। मुझे लगता है कि बतौर मुख्यमंत्री बिहार की सियासत को पहले से अधिक रोचक, रोमांचक और प्रयोगधर्मी बनाने में लालू प्रसाद यादव के योगदान की तुलना में नीतीश कुमार अधिक प्रभावशाली नेता के रूप में देखे जाएंगे। उन्होंने जोखिम उठाए और सफलता हासिल की। अधिकांश विश्लेषकों ने इस बात का इशारा किया है कि नीतीश कुमार की सफलता एक ऐसे…
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