सी. लाल। भाजपा लोक सभा चुनाव-2014 में अतिपिछड़े वर्ग की बदौलत लोक सभा के चुनाव में 80 में से सहयोगी अपना दल की दो सीटों सहित 73 सीटों पर अप्रत्याशित जीत हासिल करने के बाद अतिपिछड़ों को अपने पाला में मजबूती के साथ जोड़े रखने की हर कवायद में जुटी हुयी है। वहीं कांग्रेस भी सारा टोटका करने के बाद किसी अतिपिछड़े वर्ग को प्रदेश अध्यक्ष की बागडोर सौंप कर अपने जनाधार में वृद्धि का रास्ता तलाश रही है। कांग्रेस के 17 अगस्त के सपा सरकार विरोधी प्रदर्शन में जुटी…
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हर समर्थ आदमी अपने से कमजोर का सहायक बने
ललित गर्ग। पुराने जमाने की बात है। एक राजा था। उसे अपने विशाल साम्राज्य और धन-संपत्ति पर बहुत अभिमान था। एक दिन एक साधु उसके पास आया। उसने राजा को देखकर ही भांप लिया कि वह धन और सत्ता के मद में चूर है, लेकिन अंदर से खोखला है। राजा ने साधु से पूछा, ऐ भिखारी, बोलो तुम्हें क्या चाहिए? साधु ने मुस्कराते हुए कहा, राजन्, मैं आप से कुछ लेने नहीं, आप को कुछ देने आया हूं। इससे राजा के अंह को ठेस पहुंची। उसने सोचा कि आखिर एक…
Read Moreदुख का कारण है अपने दोषों को बड़ा करके देखना
ललित गर्ग। आधुनिक जीवन की बड़ी विडम्बना यह है कि हर व्यक्ति परेशान है। कुछ तो वास्तव में अपने अभावों और परेशानियों से सदा संत्रस्त और व्यथित रहते हैं और कुछ सब कुछ होते हुए भी पीडि़त और व्यथित रहते हैं। दोनों ही स्थितियों में इस मानसिक दुख का कारण है अपने दोषों को बड़ा करके देखना। उन्हें अपने गुण दिखाई ही नहीं देते। केवल दोष देखकर, अपनी कमियां देखकर, अपने को कुरूप मानकर, अपनी मंदबुद्धि पर मन ही मन व्यथित रहना अनेक प्रकार के मानसिक रोगों को आमंत्रित करना है।…
Read Moreक्या यह साहित्य की विफलता नहीं?
पुष्पेंद्र कुमार। तो क्या यह घरवापसी कार्यक्रम की परिणति है कि आज साहित्यकार सम्मान वापसी करते दिखाई दे रहे हैं? नयन तारा सहगल ने साहित्य एकादमी सम्मान हासिल साहित्यकारों और अन्य विद्वानों से समाज में (बेहतर हो कि इसे भाजपा सरकार के दौर में पढ़ा जाए) बढ़ती असहिष्णुता और सरकार की कथित दक्षिणपंथी ताकतों पर नकेल कसने में विफलता को लेकर एकजुट विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की है। सहगल, जो पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू परिवार की सदस्य हैं, ने अपना साहित्य एकादमी पुरस्कार लौटाकर तमाम साहित्यकारों…
Read Moreदादरी, बिहार और साहित्यकार
कृष्णमोहन झा। देश की राजधानी नई दिल्ली के समीप स्थित दादरी गांव के विख्यात कस्बे में एक पखवाड़े पहले जो भय, दहशत और नफरत का माहौल दिखाई दे रहा था उसे देखते हुए तब यह अनुमान लगाना असंभव ही था कि जल्द ही उसी कस्बे में शादी की शहनाईयां गूंजती सुनाई देंगी और मुस्लिम परिवार में संपन्न होने वाली शादी में हिन्दू परिवारों को तन मन धन से सहयोग करते हुए देखा जा सकेगा। गांव के एक निवासी की दो बेटियों की शादी गत दिवस जिस हंसी खुशी सौहार्द पूर्ण माहौल…
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