आनंदीबेन का वानप्रस्थ

देश में इस वक्त पांच महिला मुख्यमंत्री हैं, जिनमें से एक गुजरात की आनंदीबेन पटेल ने सोमवार को फेसबुक पर अपने इस्तीफे की पेशकश कर दी और उनकी पार्टी बीजेपी ने आनन-फानन इसे स्वीकार भी कर लिया। यह अभी साफ नहीं है कि उन्होंने इस्तीफे का फैसला अपनी इ’छा से किया है, या उन्हें इसके लिए मजबूर किया गया है। मगर इतना स्पष्ट है कि 75 साल की जिस उम्र सीमा के हवाले से यह फैसला लिया और स्वीकृत किया बताया जा रहा है, वह कुछ अन्य नेताओं पर उतनी…

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टूटे संकीर्ण सोच के खिलाफ चुप्पी

एस. निहाल सिंह। बेशक सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने दलित-विरोधी ज्यादतियों का आविष्कार नहीं किया है लेकिन गुजरात के ऊना में जो कुछ हुआ, उसके लिए वह दो वजहों से उत्तरदायी है। पहली, नई किस्म की राजनीतिक भाषणबाजी और नारे, जिनमें न केवल इतिहास को संकीर्ण और पक्षपाती दृष्टि से देखने की वकालत की जा रही है बल्कि यह भी बताया जा रहा है कि असल में भारत है क्या। दूसरा कारण है हिंदुत्व का प्रचार, इसके तहत पार्टी के तथाकथित जिम्मेवार पदाधिकारी तक इस तरह के अनर्गल बयान देते…

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बुलन्दशहर से जुड़े सवालों के जबाव चाहिए

ललित गर्ग। उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर में नेशनल हाइवे पर गैंगरेप का बेहद ही शर्मनाक मामला सामने आया है। कार में सवार परिवार को बंधक बनाकर वहशी दरिंदो ने मां और बेटी को हवश का शिकार बनाया है। सामूहिक दुष्कर्म की यह खौफनाक घटना कानून के शासन को कलंकित करने और सभ्य समाज को लज्जित करने वाली हैं। रूह को कंपा देने वाली इस घटना ने एक बार फिर नारी अस्मिता को कुचला है। एक बार फिर नारी की इज्जत को तार-तार किया गया। उस डरावनी एवं खौफनाक रात्रि की कल्पना…

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खेल : साजिश है तो पर्दाफाश जरूरी

मनोज चतुर्वेदी। फ्रीस्टाइल कुश्ती में 74 किग्रावर्ग के पहलवान नरसिंह को पांच अगस्त से रियो में शुरू होने वाले ओलंपिक खेलों में पदक जीतने का दावेदार माना जा रहा था. इस पहलवान के ए और बी दोनों नमूने पॉजिटिव आने पर उसका रियो ओलंपिक में नहीं जाना लगभग पक्का हो गया है. वैसे तो नरसिंह की जगह 74 किग्रावर्ग में किसी और पहलवान के जाने की संभावना न के बराबर है क्योंकि प्रविष्टि भेजने की आखिरी तारीख 18 जुलाई निकल चुकी है. वैसे तो किसी खिलाड़ी के चोटिल हो जाने…

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सैल्फी युग का सैल्फिश रोग

शमीम शर्मा। आजकल एक नई कहावत प्रचलन में है कि सैल्फी लेने में दो सैकिंड लगते हैं पर इमेज बनाने में सालों लग जाते हैं। सवाल है कि इमेज की चिन्ता ही किसे है? आज की युवा पीढ़ी को क्या चाहिये? उनके लिये दो वक्त की रोटी से भी ज़्यादा ज़रूरी दो वक्त की सैल्फी हो गई है। वे दिन सभी को याद होंगे जब स्कूलों में मास्टरों के हाथ में एक छड़ी हुआ करती थी जो शरारतियों की धुनाई की ड्यूटी निभाया करती। अब छड़ी का रूप बदल गया…

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