ब्रिटेन में नई पीएम: लचीलेपन की जरूरत

असाधारण परिस्थितियों में टरीसा मे ने ब्रिटेन की प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभाल लिया है। इस पद पर आने वाली वे दूसरी महिला हैं। उनसे पहले लौह महिला के रूप में चर्चित मारग्रेट थैचर देश का नेतृत्व कर चुकी हैं। लेकिन जिन हालात में टरीसा मे को देश की कमान मिली है, उनमें कामयाब साबित होने के लिए उन्हें सख्ती से ज्यादा लचीलेपन की जरूरत पड़ेगी। दिलचस्प है कि कैबिनेट गठन के साथ ही उनकी आलोचना भी शुरू हो गई है। सबसे ज्यादा सवाल बोरिस जॉनसन को विदेश मंत्री…

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फेडरलिज्म पर दूसरी चपत

उत्तराखंड के बाद अब अरुणाचल प्रदेश में भी कांग्रेस सरकार को बहाल करने का आदेश देकर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर यही संदेश दिया है कि केंद्र सरकार चाहे कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो, वह राज्यों के विधायी कार्यों में मनमाने तरीके से दखल नहीं दे सकती। केंद्र सरकार और राज्यपाल की तरफ से पेश की गई सारी दलीलों को खारिज करते हुए कोर्ट ने राज्य में 15 दिसंबर से पहले की स्थिति बहाल करने को कहा है। कोर्ट ने गवर्नर ज्योति प्रसाद राजखोवा द्वारा विधानसभा सत्र एक…

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उत्तर प्रदेश को है सक्षम नेतृत्व की तलाश

ललित गर्ग। भारतीय राजनीति में उत्तर प्रदेश का महत्व सर्वाधिक इसलिये है क्योंकि केन्द्र की राजनीति भी वही से निर्धारित होती रही है। इसीलिये एक मुहावरा चर्चित है कि दिल्ली का रास्ता लखनऊ से होकर जाता है। इस जैसे बड़े, जटिल और बहुध्रुवीय राज्य का चुनाव एक बार फिर चर्चा में हैं। सभी राजनीतिक दलों ने अपनी जीत को सुनिश्चित करने के लिये प्रयास शुरू कर दिये हैं। राजनीतिक दृष्टि से सशक्त होने, भौगोलिक दृष्टि से समृद्ध होने एवं सांस्कृतिक-साहित्यिक-धार्मिक दृष्टि से गौरवमय होने के बावजूद यह प्रान्त लगातार पिछडता…

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क्या अतीत की तरह स्वर्णिम होगा देश का भविष्य

विमल शंकर झा। स्वर्णिम अतीत वाले देश में उम्मीद की जा रही है कि इसका भविष्य भी सुनहरा होगा। यह खुशफहमी गलतफहमी न साबित हो इसके लिए इस देश की सरकार और समाज कितने संजीदा और ईमानदार हैं ? आज के बच्चे ही देश का भविष्य हैं, नई पीढ़ी से हमारी इस तरह की आशाएं कितनी अपेक्षित हैं, यह उनके वर्तमान को देख कर अंदाज लगाया जा सकता है। और देश का भविष्य गढऩे हम उन्हें किस तरह तैयार कर रहे हैं ? निस्संदेह बच्चे पहले की अपेक्षा आज अधिक…

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अफगानिस्तान में भारत की बड़ी भूमिका

अशोक के.मेहता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अफगानिस्तान में दिसंबर 2015 को काबुल में और जून 2016 को हेरात में दिए अपने भाषणों में जब यह प्रतिबद्धता दोहराई थी कि हालात कितने भी विपरीत क्यों न हों, भारत फिर भी अफगानिस्तान के साथ खड़ा रहेगाÓ तो उनके इस कथन ने अफगान लोगों का दिल जीत लिया था। मगर हेरात की परियोजनाओं और वहां काम रहे भारतीयों की सुरक्षा की खातिर अपने सैनिक तैनात करने की संभावना को भारत ने सिरे से खारिज कर दिया था। इस्लामाबाद में दिसंबर 2015 में आयोजित…

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