शालिनी श्रीवास्तव, दिल मेरा उसवक्त यारों बहुत दुखता है। देश का तिरंगा जब सड़कों पर बिकता है। बेमोल झंडे का मोल देते है यहाँ सभी , और नेताओं का झंडा बेमोल बिकता है। अमीरी,गरीबी की खाई गहरी होती गई, गली-गली में अब तो भ्रष्टाचार दिखता है। आज़ादी के नाम पर यह क्या देखती हूँ, असहिष्णुता पर कैसे हिन्दुस्तान चीखता है। राष्ट्रीय पर्व को महज़ छुट्टी, मस्ती समझना, युवा पीढ़ी की बदली कैसी मानसिकता है। देश का झंडा उसवक्त खुद ही झुकता है, गरीब और बेरोजग़ार जब दर-दर भटकता है। फर्ज…
Read MoreCategory: विचार
जीवन को संवारती है छोटी-छोटी बातें
ललित गर्ग एक आदमी ने बबूल का पौधा लगाया और बड़ी लगन से उसकी देखभाल की। लोगों ने उसे कंटीले पौधे पर इतनी मेहनत करते देखकर कहा, ‘‘यह तुम क्या कर रहे हो?’’ उस आदमी ने उत्तर दिया, ‘‘इस पौधे पर इतने बढि़या फल आयेंगे कि तुम देखते रह जाओगे।‘‘ लोगों ने उसे समझाया कि तुम पागल हो। कहीं बबूल के पेड़ पर आम लग सकते हैं? पर उस आदमी के समझ में नहीं आया। रोज उत्सुकता से देखता कि अब उस पर आम लगेंगे, अब लगेंगे, लेकिन आम लगने…
Read Moreमीडिया समझे अपनी ज़िम्मेदारी
शालिनी श्रीवास्तव समाज को नज़रिया देने और बदलने में मीडिया की बड़ी भूमिका होती है | सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह का विचार आजकल मीडिया द्वारा प्रसारित किया जा रहा है | जबसे न्यू जर्नलिज्म का कॉन्सेप्ट आया है, तबसे मीडिया प्राइवेटाइजेशन और कार्पोरेटाइजेशन की दिशा में बहुत आगे बढ़ चूका है | ये हाल सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का नहीं है, बल्कि प्रिंट और वेब यानि डिजिटल मीडिया भी इससे अछूता नहीं है | समय के साथ-साथ खबरों की दिशा बदली है | साथ ही खबरों को प्रसारित करने की…
Read Moreयही है आनन्द का सही और सुन्दर मार्ग
ललित गर्ग। हर इंसान चाहता है कि वह सफल हो, सुखी हो एवं सार्थक जीवन जीएं। उसके जीवन में प्रसन्नता हो, आनंद हो। इसका प्रभावी सूत्र यही है कि हम लोगों में अच्छाई तलाशें। बुराई को नकारने की आदत डाले। संभव है हमें घर-परिवार, पड़ोस और दफ्तर में कुछ लोग पसंद नहीं करते हो। इस सच्चाई को मानकर चलिये कि लगभग प्रत्येक व्यक्ति में कुछ-न-कुछ अच्छाइयां भी होती ही हैं। हमेशा बुराइयों को ही न देखें। यदि हम उनकी अच्छाइयों पर ध्यान देकर उन्हें स्वीकारें तो हमारे प्रति उनका अप्रिय…
Read Moreआरक्षण: कांग्रेस बनाम डा.अम्बेडकर
शचीन्द्र कुमार दुबे डा. भीमराव अम्बेडकर कि सलाह पर गांधीजी आराक्ष्ण कि आवश्यकता समझते हुए 10 वर्ष के लिए मान्यता प्रदान किया था। परन्तु आरक्षण एक मत कोष है जिसकी आवश्यकता नेहरूजी को थी, फलस्वरूप संबिधान कि आत्मा में मुलभूत परिवर्तन करते हुए नेहरू जी ने ऐसी सम्बिदा का प्रावधान किया जो कांग्रेस को सैदव बनाये रखने के लिए पर्याप्त है। तदुपरांत श्रीमती इंदिरागांधी-जी पिता के नियमों का पालन करते हुए अराक्षण कि अवधि को निरंतर अग्रसरित किया। अत: सन 1950 से लेकर आजतक, कुल 65 वर्ष की आयु तक,…
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